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Showing posts from April, 2011
"देवता  और पत्थर"   पत्थरों में  कितना  "भाव" भरा हमने क़ि ये देवता बन गए और उन्हें "देवता" बनाते- बनाते  "हम" खुद "पत्थर" बन गए !! 
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किया है काफिले से तूने जो वादा निभा उसको न जाने किस तरफ ले जाएगी पागल हवा उसको तू खुसबू है सताता रहता है ये डर सदा उसको खुदी से प्यार है जिसको खुदी की जात से बढ़कर  कही भी चैन से रहने नहीं देगी अना उसको हर एक इंसान दुनिया में मुझे अपना नजर आया तअस्सुब के हिसाबों को हटा कर जब पढ़ा उसको वो कमसिन है मगर अरमान है कितना नुमाइस  का  अभी नज़रों की साजिस का नहीं शायद पता उसको वो अक्सर मिला करता है सबसे मुस्करा के यूं मिलेगी देख लेना मुस्कराने की सजा उसको Add caption      
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कुछ बातें जो मैं लिख नहीं पाया  सर्दी की ठिठरती  शामों की बरखा में बरसती सोचों की  गर्मी में चमकती आँखों की  सुर्खी में भड़कते होंठो की उम्रो में भटकते यादों की!!    
आँखों का था कसूर न दिल का कसूर था,           मिलते ही आँख शीशा- ए- दिल चूर- चूर था !!