इक सफ़र में हूँ मुसलसल इक सफ़र मुझमे भी है
इक शहर में घूमता हूँ, इक शहर मुझमे भी है !
मेरे टूटे घर को हंसकर देख मत मेरे रकीब
मै अभी टूटा नहीं हूँ इक घर मुझमे भी है !
खूब वाकिफ हूँ में दुनिया की हकीकत से मगर
शख्स कोई हर तरफ से बेखबर मुझमे भी है !
लालसाओं की नदी में आदमियत गर्क है
उस नदी में डूबने को इक भंवर मुझमे भी है !
वक़्त के असरात से कोई अछूता है नहीं
कैसे मै इनकार कर दूं कुछ असर मुझमे भी है !
बेधड़क, बेख़ौफ़ चलता हूँ बियाबों में , मगर
आइने से सामना होने का डर मुझमे भी है !!
Comments
Post a Comment