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Showing posts from May, 2011
जब नरम गुलाबी होंठो से हिम का सा हास बिखर जाये रसियाते राते गालों पर तन का मधुमास बिखर जाये ! जब सारे शब्दों  की भाषा 'हाँ' 'ना' में अटकती हो अंगो से होकर अंगो तक चन्दन की बास लिपटती हो ! तब नीति नियम सिर पर बोलें, तब दूर क्षितिज पर मन डोले मुझको तो ऐसे योवन की सौगात असंभव लगती है !!!    
क्या छुपा के लाया था किसका नाम लिक्खा  था दफन हो गया लेकिन मुट्ठियाँ नहीं खोलीं !! इस गली के लोगो की पर्दादारियां देखो  उम्र भर मकानों की खिड़कियाँ नहीं खोलीं !!  

हकीकत.............

खुली फिज़ा में पर तोलने से डरने लगे ये क्या हुआ की जुबाँ खोलने से डरने लगे ! कुछ ऐसा झूठ का जादू चला है अब के बरस  हम अपने घर में ही सच बोलने से डरने लगे !!!!

THE BARE TRUTH

कई प्रश्न ऐसे है जो बतलाये नहीं जाते कई उत्तर भी ऐसे है जो समझाए नहीं जाते बनाना चाहता हूँ स्वर्ग तक सोपान सपनो का मगर चादर से ज्यादा पाँव फैलाये नहीं जाते !!!

जिंदगी ............

 अब कशिश में उलझ कर  रह गयी है जिंदगी  यूं बेबसी में ही फंसकर रह गयी है जिंदगी अब मुझे उस पार किनारे  कौन उतारेगा पार तेरे साथ साहिल  कर गयी है जिंदगी!!!  
इक सफ़र में हूँ मुसलसल इक सफ़र मुझमे भी है  इक शहर में घूमता हूँ, इक शहर मुझमे भी है ! मेरे टूटे घर को हंसकर देख मत मेरे रकीब मै  अभी टूटा नहीं हूँ इक घर मुझमे भी है ! खूब वाकिफ हूँ में दुनिया की हकीकत से मगर शख्स कोई हर तरफ से बेखबर मुझमे भी है ! लालसाओं की नदी में आदमियत गर्क है उस नदी में डूबने को इक भंवर  मुझमे भी है ! वक़्त के असरात से कोई अछूता है नहीं कैसे मै इनकार कर दूं कुछ असर मुझमे भी है ! बेधड़क, बेख़ौफ़ चलता हूँ बियाबों में , मगर आइने से सामना होने का डर मुझमे भी है !!

एक नशा, एक गीत, एक दर्द

हरे वृक्ष की टहनियों पर  अनायास खिल गए हैं अनगिनत लाल फूल कुछ वैसा ही जैसा - किसी बेवा की मांग में फिर से सिन्दूर पावलो नेरूदा ने लिखा - दर्द या, ब्रेख्त ने सहा दर्द, या मुक्तिबोध ने चाँद को देखकर भरी आह !  तो फिर इस बहाने  चले आते हैं फूल जेहन में उठती है दिशाहीन ध्वनियाँ   टकराते हैं शोर आपस में ख़ामोशी से  कि कौन कहता है जीना एक नशा है ? कि हमने जो गढ़ा है  वह मुकम्मल एक गीत है ? कि कौन कहता है  हमने जो सहा वह बहुत सहा ? कोई पत्ता बेचैन नहीं सागर कि कोई बूँद नहीं या कोई उदास शाम नहीं यह सीमन- द- वुवा नहीं - सार्त्र नहीं यह नशा नहीं गीत नहीं कविता नहीं यह सदियुं से, खूंटे से बंधी  एक तस्वीर है - सदियों से  मीलों से आती एक अनसुनी आवाज़ है !!!               
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तुम्ही हो : मेरी पहली चाहत मेरी पहली मुहब्बत तुम्ही हो ! मेरे गीतों की लाज  मेरे गजल की जीनत तुम्ही हो ! तुम हमारी शानो शौकत मेरे लिए मसर्रत तुम्ही हो ! मेरे लिए बेकली तुम मेरे दिल की रहत तुम्ही हो ! मेरे लिए बज़्म तुम मेरे लिए खल्वत तुम्ही हो ! मेरे लिए ख्वाब तुम मेरे लिए हकीकत तुम्ही हो ! तुमसे रौशन  मेरा जहाँ मेरे लिए माहताब तुम्ही हो ! मेरी ज़िन्दगी भी तुम  मेरे लिए वफात तुम्ही हो!!     
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काँटों की चुभन देती है फूलों का मजा भी, मई दर्द के लम्हात में रोया भी हंसा भी ! आने की याद न जाने की खबर है, वो दिल में रहा और उसे तोड़ गया भी! हर एक मंजिल का पता पूछ रहा है, गुमराह मेरे साथ हुआ भी राहनुमा भी!!!